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नटराज मैथिली कवीताक सारांश लिख-maithli kavita

 

नटराज  मैथिली कवीताक सारांश लिख।

मैथली कविता

 मैथिली साहित्यक ई विशाल प्रासाद जँ कोनो एकटा स्तम्म पर ठाढ अछि तें ओ

निस्सन्देह विद्वापति थिकाह। मैथिली साहित्यक या मैथिली कविता एहि विशाल वटवृक्षक जे सीर सभसँ गहहीर धरि। गेल अछि, तकर नाम विद्वापति थिक। जे विद्यापतिरुपी सूर्यक आविर्भाव मैथिली काव्य-गन मे नहि भेल रहैत तें रात्रिक व्याप्ति आर कतेक सय वर्ष भ् जाइत, से के कहि सकैछ ? वस्तुतः ई मैथिली कविता


कविकोकिलक काकलीएक प्रभाव छल जे मैथिली काव्योपवन मे वसन्तक साम्राज्य व्याप्त भड गेल मैथिली कविता  ड० भीमनाथ झाक ई उक्ति विद्यापतिक प्रसंग शात-प्रतिशत सटीक अछि।


पाठ्य पुस्तक मे संगहीत नटराज मिथिला मे महेशावाणीक रूप मे प्रचलित अछि। एहि मे। शिव आ पार्वतीक लीलाक वर्णन कयल गेल अछि। नटराज महादेव के कहल गेलनि अछि। महादेवक पत्ती गौरी हनका नचवाक लेल कहैत छथिन, ताहि पर महादेव चारिटा बाधा उपस्थित होयबाक बात कहि एहि प्रस्ताव कें टारबाक प्रयास करैत छथि। मुदा, अंत मे गौरीक बात मानि नाच देखा दैत छथिन। दाम्यत्य जीवनक एहि रंग-रभसकें देखल जाय।


गौरी कहैत छथिन जे आई हम एकटा वत केने छी जे हमरा महासुखक आनन्द द सकैत। अछि। अहाँ आई नटुआक रूप धारण क डमरू बजाय हमारा नाच देखाउ। एहि प्रस्ताव पर महादेव तिलमिला जाइत छथ्ि आ कहैत छथिन अहाँ जे कहै छी गौरी नाच् से हम कोना नाचव। कारण जे हमार नचला सँ चारिटा सोच भ रहल अछि से कोना बाँचत। हमरा नचला सें अभिअ


अर्यात अम्ृत चुविक् वघम्वर पर खसत, जाहि सें बघम्बर बाघ भ जाएत आ हमर बसहा बाध

देखिते पडा जायत। दोसर सौच अछि जे अखने हम नाचव शरू करब ते गरदनि मे जे लपेटल। अछि साँप से ससरि क खसत आ दसो दिस जाय लागत, जाहि सें कार्तिकक पोसल जे मयूर। छनि तकरा खा जायत्त।


(दसो दिशा भेल-उपर, नीचाँ, पूब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान, वाहवय, नैकऋत्य आ अन्नि)। तेसर सोच भ रहल अछि जे हमर जटा मे गंगा समेटल छथि से। नचला सें छिलकिछिलकि क भूमि पर खसती, जाहि सें हुनक धार सहसमुख अर्थात् सैकडो धारे फूटि जयतनि जे बाद मे


समेटलो नहिं जा सकैत अछि। अंतिम आ चारिम सोच छनि जे गर्दीने मे जे मुण्डमाल पहिरने छथि से नचला से ट्रटि जेतनि, जाहिसे मसानी जागि जेतनि। मसानी जगितहि अहाँ के डर भ जायत। अहाँ हमारा छोडि परा जायब तखन हमर नाच कोना देखव।



ई चारू सोच कें अछैतो विद्यापति कहैत छथि जे शिव राखल गौरी केर मान' आ हुनका नाचि क देखा देलथिन। गौरी जे वत रखने छलीह से पूरा भेलनि आ महासुखक आनन्द भेटलनि।



निष्कर्ष : पत्लीक आग पति लाचार भ जाइत अछि। ओकर जिद सरेपिरि भ जाइत छैक।



पत्तीक इच्छा के रखबाक लेल पति किर करवाक लेल तैयार भ जाइत अछि।

विद्यापति सरल सोज्ग शब्दावली मे नटराजक दाम्पत्य-जीवनक बहने खव नीक चित्र उपस्थित कयलनि अछि।

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नटराज  मैथिली कवीताक सारांश लिख-maithli kavita